
मोहब्बत करनी आती है नफरतो का कोई ठौर नही,
बस तू ही तू है इस दिल मे दूसरा कोई और नही।
न जाहिर हुई तुमसे और न ही बयान हुई हमसे,
बस सुलझी हुई आँखो में उलझी रही मोहब्बत।
रोज साहिल से समंदर का नजारा न करो,
अपनी सूरत को शबो-रोज निहारा न करो,
आओ देखो मेरी नजरों में उतर कर खुद को,
आइना हूँ मैं तेरा मुझसे किनारा न करो।
संभाले नहीं संभलता है दिल,
मोहब्बत की तपिश से न जला,
इश्क तलबगार है तेरा चला आ,
अब ज़माने का बहाना न बना।
तेरे सर से हिज़ाब का सरकना
एक शायर का चाँद पे फ़िदा हो जाना,
और दोनों का इक साथ होना
काश! ऐसा हो मेरे इश्क का पैमाना।
उसकी मोहब्बत लाख छुपाई ज़माने से मैंने,
मगर आँखों में तेरे अक्स को छुपा न सका।
वो मुझ तक आने की राह चाहता है,
लेकिन मेरी मोहब्बत का गवाह चाहता है,
खुद आते जाते मौसमों की तरह है,
और मुझसे मोहब्बत की इन्तहा चाहता है।
ये न समझ कि मैं भूल गया हूँ तुझे,
तेरी खुशबू मेरे सांसो में आज भी है,
मजबूरियों ने निभाने न दी मोहब्बत,
सच्चाई मेरी वफाओं में आज भी है।
दिल की हर बात जमाने को बता देते हैं,
अपने हर राज पर से परदा उठा देते हैं,
आप हमें चाहें न चाहें इसका गिला नहीं,
हम जिसे चाहें उस पर जान लुटा देते हैं।
दिल में ना हो जुर्रत तो मोहब्बत नहीं मिलती
खैरात में इतनी बड़ी दौलत नहीं मिलती।
गम में ख़ुशी की वजह बनी है मोहब्बत,
दर्द में यादों की वजह बनी है मोहब्बत,
जब कुछ भी ना रहा था अच्छा इस दुनिया में,
तब हमारे जीने की वजह बनी है यह मोहब्बत।
इजहार-ए-मोहब्बत पे अजब हाल है उनका,
आँखें तो रज़ामंद हैं लब सोच रहे हैं।
इश्क़ भी हो हिजाब में हुस्न भी हो हिजाब में,
या तो ख़ुद आश्कार हो या मुझे आश्कार कर।
इश्क़ इक मीर भारी पत्थर है,
कब ये तुझ ना-तवाँ से उठता है।
(ना-तवाँ – कमजोर)
खयालों में उसके मैंने बिता दी ज़िंदगी सारी,
इबादत कर नहीं पाया खुदा नाराज़ मत होना।
मैं तेरे प्यार में इतना ग़ुम होने लगा हूँ सनम,
जहाँ भी जाऊं बस तुम्हें ही सामने पाने लगा हूँ,
हालात यह हैं कि हर चेहरे में तू ही तू दिखता है,
ऐ मेरे खुदा अब तो मैं खुद को भी भुलने लगा हूँ।